Dipawali 2019
- 22 June 2020
पूजा का सीधा और सरल अर्थ है सम्मान करना, सादर स्वागत करना, आराधना करना, अर्चना करना और आदर पूर्वक भेट चढ़ाना है | सगुणोपासना में देव-पूजन का बड़ा महत्व है | वैदिक काल से ही अग्नि, सूर्य, वरुण, रूद्र, इंद्र इत्यादि देवताओं एवं दिव्य शक्तियों का पूजन होता रहा है तथा इनसे प्राप्त चमत्कारिक उपलब्धियों से इतिहास भरा पड़ा है | पुरातन परंपरा से ही हमें देवार्चन की दो विधियां प्राप्त होती है -
योग (यज्ञ )
पूजन
1 .योग का अर्थ वर्त्तमान का योगा नहीं है, अग्निहोत्र द्वारा अर्चन करना योग अथवा यज्ञ है | यह अनेक लोगों के सहयोग से होता है | इसमें मन्त्रों व प्रक्रिया का विशिष्ठ क्रम होता है | यह योग (यज्ञ) सकाम व निष्काम भेद से कई प्रकर के होते हैं तथा इनको करने की क्रिया अलग अलग प्रकार की होती है |
2 .निश्चित द्रव्यों के साथ देवताओं के अर्चन को पूजा कहते हैं | पत्र, पुष्प, जल द्वारा अर्चन करना की पूजा है | उस पूजा के द्वारा मनुष्य अपने आराध्य देव को प्रसन्न कर मनोवांछित फल मांगता है |
पंचोपचार से लेकर सर्वाङ्ग उपचार तक इन पूजाओं के कई विधान है |
पूजन की दो मुख्य परिपाटी है -
वैदिक परिपाटी
पौराणिक परिपाटी
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