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शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा .....

सृष्टी की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय   - इन तीन कार्यों के लिए ईश्वर ने स्वयं को ब्रह्मा , विष्णु और शिव इन तीन रूपों में विभक कर रखा है, परन्तु ये तीनो एक ही हैं | शिव जी की लीला चरितों का बृहद वर्णन "शिव पुराण" एवं " लिंग पुराण" में पाया जाता है | अन्य सभी पुराणों में भी iश्री शिव जी की महिमा का गुणगान है | एक बार ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद छिड़ा की हम दोनों में से बड़ा कौन है ?इसका निर्णय कर लिया जाए, दोनों ही स्वयं को बड़ा मान रहे  थे | जिस समय यह विवाद अपने चरम पर था उसी दौरान उन दोनों के मध्य एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जिसका विस्तार अपरम्पार था | ब्रह्मा और विष्णु इस ज्योतिर्लिंग को देख कर चकित रह गए | फिर दोनों ने यह निर्णय लिया जो भी इस ज्योतिर्लिंग के ओर-छोर का पता लगा लेगा वही बड़ा मन जाएगा | ज्योतिर्लिंग के ओर-छोर का पता लगाने के लिए दोनों एक दुसरे के विपरीत दिशा में चल दिए | परन्तु सहस्त्रो दिव्य वर्षों तक प्रयत्न करते रहने पर भी किसी को उसके ओर-छोर का पता नहीं चला | अंत में, दोनों हारकर पुनः उसी स्थान पर लौट आये, जहाँ से उन्होंने यात्रा प्रारंभ की थी | विष्णु ने तो स्पष्ट-रुपेन अपनी हार स्वीकार किया और कहा की मैं इस ज्योति-स्तम्भ का पता नहीं लगा पाया, परन्तु ब्रह्मा ने मिथ्या बोलते हुए कहा की मैंने इसके एक छोर का पता लगा लिया है  और अपने गवाह के रूप में उन्होंने  केतकी को भी प्रस्तुत कर दिया | उसी समय यह आकाशवाणी हुई की ब्रह्मा और केतकी दोनों झूट बोल रहे है , इसको सुन के ब्रह्मा जी अत्यंत लज्जित हुए और भय के मारे थर थर कापनें लगे | जिस समय ब्रह्मा और विष्णु यह सोच रहे थे की यह आकाशवाणी को करने वाला कौन है ? उसी समय ज्योतिर्लिंग के मध्य से भागवान शिव सहसा ही प्रकट हो गए, तब ब्रह्मा और विष्णु ने उनके परम तेजस्वी दिव्य स्वरुप को देखकर उन्हें प्रणाम किया तथा पूछा हे प्रभो ! आप कौन है ? हमें यह बताने की कृपा करें | तब शिव जी बोले हे ब्रह्मा ! और हे विष्णु ! तुम दोनों व्यर्थ विवाद कर रहे हो | इस संपूर्ण ब्रहमांड का स्वामी मैं हूँ | मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है, तुम दोनों को परस्पर विवाद करते हुए देखकर मैं ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुआ था, जिसके ओर छोर को तुममे से कोई भी नहीं लगा पाया | ब्रह्मा ने जो झूठ  बोला उसके कारण ब्रह्मा की पूजन नहीं की जायेगी और केतकी की गिनती पुष्प में है की जायेगी और केतकी मुझे कभी भी स्वीकार्य नहीं होगी | आप दोनों अपने अपने अहंकार को त्याग दो तथा स्वयं को मेरा ही स्वरुप एवं आज्ञानुवर्ती समझो, इतना कह कर शिव जी अंतर धयान  हो गए | पहले तो दोनों बहुत लज्जित हो गए फिर दोनों ही शिवजी की स्तुति करते हुए अपने अपने लोक चले गए |  इस कथा से स्पष्ट हो गया की देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है ?

जय भोले

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