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हिन्दू विवाह का सत्य !!!

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हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ? क्या कभी आपने सोंचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है ? रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को,राक्षसी प्रवृति बताया जाता है. रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं. केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्री में हवन यज्ञ की अनुमति है. वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे है. तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पडी ? कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल नहीं खोजते हैं ? दरअसल भारत में सभी उत्सव एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे. सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था. प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे . मुस्लिम पिशाच आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोड़ने को विवश होना पडा था . मुस्लिम पिशाच आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये. यह आक्रमणकारी पिशाच हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुचकर लूटपाट मचाते थे. कामुक अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे. भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनकी विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था. उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे. दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुडाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया | उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने लगे. लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि - नाच -गाना, दावत, जयमाल, आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रातः पौ फटने के बाद ही हों. पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया . फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी. हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े - बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये. तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ. पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं. महाराष्ट्र एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे है, हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, मुसलमानों पर जजिया कर लगाया, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया , इसीलिए उनको “पुष्यमित्र शुंग” का अवतार कहा जाता है| सभी विवाह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ब्रह्ममुहूर्त में ही संपादित किये जाते हैं . ध्रुवतारा को स्थिरता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो ब्रह्ममुहूर्त में ही सबसे अच्छा दृष्टिगोचर होता है । लेकिन साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता है । इसीलिए अग्नि के ही फेरे लिए जाने की विधि है । पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं ....!! आज भी हम उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोग जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से चले गए किन्तु आज भी उसे परंपरा मानकर उसे चला रहे है! असल मे हम गुलामी की मानसिकता से उबरना ही नही चाहते है ! आप सभी से विनम्र निवेदन है कि इस प्रथा पर आप सब एक बार अवस्य विचार करे एवं अपनी धुरी पर वापस लौटे ।

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