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Ketu - The Dragon's Tail

ketu statue

केतु का नाम
संस्कृत- शिखी, ध्वज, राहुपुच्छ |
अंग्रेजी- dragon 's tail (ड्रैगन्सटेल )
उर्दू- जनब

वर्ण – धुंए जैसा (मतान्तर से - काजल जैसा )
अवस्था – वृद्ध
लिंग – स्त्री
जाति – म्लेच्छ
स्वरुप – मलिन
गुण – तम
तत्त्व- वायु (मतान्तर से आकाश, तेज)
प्रकृति – वात
दिशा- दक्षिण -पश्चिम कोण
धातु – लोहा
रत्न – लहसुनिया (Cat 's eye )

केतु को भी काल-पुरुष का दुःख माना गया है | अतः यह दुःख और शोक का प्रतीक है | ग्रह मंडल में कोई भी पद नहीं प्राप्त है | यह राहु ग्रह का धड़ मात्र है पर अत्यंत प्रभावशाली है |

आधिपत्य - अशुभ विषयों, अजीब से स्वपन, मृत्यु, कारावास, दुर्घटना, स्नायु सम्बन्धी विकार पर इसका अधिकार है |

केतु से प्रभावित अंग व रोग
पैर के तलवों, चर्म को प्रभावित करता है |
चर्म रोग, कुष्ठ रोग, क्षुधा-जनित रोग तथा स्नायु सम्बन्धी रोग

केतु एक छाया ग्रह है, यह कभी मार्गी नहीं होता यह सदैव ही वक्री होता है | राहु की ही तरह केतु की भी स्वयं की कोई राशि नहीं होती है पर अलग अलग विद्वान अलग अलग राशि में इसको उच्च और नीच का मानते हैं | परन्तु राहु की ही तरह केतु भी एक अत्यंत बलशाली ग्रह है जो शुभता को अशुभता में बदलने में सिद्धस्त है |

मित्र और शत्रु
बुध, शुक्र तथा शनि केतु के नैसर्गिक मित्र है |
बृहस्पति से केतु समभाव रखता है |
सूर्य, चन्द्र और मंगल से केतु की नैसर्गिक शत्रुता है |

केतु जब ख़राब फल देता है तो ये होता है जातक के जीवन में असर, विडियो देखें

केतु के उपाय के लिए विडियो देखें

 

 

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