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भद्रा (Bhadra)

bhadra

भद्रा भगवान सूर्य का कन्या है। सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि की सगी बहन है। यह काले वर्ण, लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा भयंकर रूप वाली है। यह स्वाभाव से क्रूर और प्रजा को पीड़ा पहुँचाने में आनंद की अनुभूति करती थी | सूर्य भगवान से सोचा इसका विवाह किसके साथ किया जाए। प्रजा के दुख को देखकर ब्रह्माजी ने भी सूर्य के पास जाकर उनकी कन्या द्वारा किए गए दुष्कर्मो को बतलाया।
यह सुनकर सूर्य ने कहा आप इस विश्व के कर्ता-भर्ता हैं, फिर आप ही उपाय बताएं।

ब्रह्माजी ने विष्टि को बुलाकर कहा- हे भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो और जो व्यक्ति यात्रा, प्रवेश, मांगल्य कृत्य, रेवती, व्यापार, उद्योग आदि कार्य तुम्हारे समय में करे, उन्हीं में तुम विघ्न करो। तीन दिन तक किसी प्रकार की बाधा न डालो। चौथे दिन के आधे भाग में देवता और असुर तुम्हारी पूजा करेंगे। जो तुम्हारा आदर न करें, उनका कार्य तुम ध्वस्त कर देना। इस प्रकार से भद्रा की उत्पत्ति हुई। अत: मांगलिक कार्यो में अवश्य त्याग करना चाहिए।

भद्रा के 12 नामों का प्रात:काल उठकर जो स्मरण करता है उसे किसी भी व्याधि का भय नहीं होता। रोगी रोग से मुक्त हो जाता है और सभी ग्रह अनुकूल हो जाते हैं। उसके कार्यो में कोई विघ्न नहीं होता। युद्ध में तथा राजकुल में वह विजय प्राप्त करता है जो विधि पूर्वक नित्य विष्टि का पूजन करता है, नि:संदेह उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली तथा असुरक्षयकरी

 

भद्रा में वर्जित कार्य
मुहुर्त्त  चिंतामणि और अन्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाहसंस्कार, गृहप्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं.

मुहुर्त्त मार्त्तण्ड के अनुसार भद्रा में किए गये शुभ काम अशुभ होते हैं | कश्यप ऋषि ने भद्रा का अति अनिष्टकारी प्रभाव बताया है, उनके अनुसार अपना जीवन जीने वाले व्यक्ति को कोई भी मंगल काम भद्राकाल में नहीं करना चाहिए | यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही मंगल कार्य करता है तब उसके मंगल कार्य के सब फल समाप्त हो सकते हैं |


भद्रा में किए जाने वाले कार्य

भद्रा में कई कार्य ऎसे भी है जिन्हें किया जा सकता है जैसे - अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग, आप्रेशन करना, शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना आदि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं |


भद्रा का वास

मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार

चंद्रमा जब कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है |

चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है |

चंद्रमा जब कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में स्थित होने पर भद्रा पाताललोक में होती है |

भद्रा जिस लोक में रहती है वही प्रभावी रहती है, इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी वह पृथ्वी पर असर करेगी अन्यथा नही | जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फलदायी कहलाएगी |


भद्रा संबंधी परिहार

    यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का परिहार माना जाता है. भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है. ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है.
    एक अन्य मतानुसार जब उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना जाता है, भद्रा दोषरहित होती है.
    यदि कभी भद्रा में शुभ काम को टाला नही जा सकता है तब भूलोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को त्यागकर स्वर्ग व पाताल की भद्रा पुच्छकाल में मंगलकार्य किए जा सकते हैं |

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