Bhakti ki Shakti
- 22 November 2013
ब्रह्मचारिणी -
स्वार्थ सिद्धि, विजय और आरोग्यता के लिए माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है |
नवरात्री के दूसरे दिन माँ दुर्गा का पूजन - अर्चन ब्रह्मचारिणी के रूप में किया जाता है | यहाँ ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है | ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी - तप का आचरण करने वाली | अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी, तब नारद के उपदेश से इन्होने कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को पति रूप में ग्रहण किया | माता के मस्तक पर स्वर्ण-मुकुट, दाहिने हाथ में जय के माला तथा बाएं हाथ मे कमंडल सुशोभित रहता है | माँ के इस रूप की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है |
हाथों में पुष्प ले कर माता का ध्यान करें
दधाना करपाद्याभ्यां यक्षमालां कमण्डलं | देवी प्रसीदतु मयी ब्रहृमचारिण्य नमोस्तुते||
ध्यान उपरांत माता के श्रीचरणों में पुष्प अर्पित करें इसके बाद पंचोपचार पूजन के साथ दूध से निर्मित नैवेद्य माता को भोग लगाएं और फिर इस मंत्र की कम से कम एक माला (१०८ बार) जाप करें
" ऊँ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नमः " इसके बाद अपने मनोरथ की प्राप्ति के लिए पूरे मनोयोग से माता से प्रार्थना करें और आरती करें |