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अनंत चौदस

अनंत चतुर्दशी / अनंत चौदस 

विष्‍णु के अनंत स्‍वरूप की उपासना का दिन है

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्‍णु के अनंत स्‍वरूप की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्‍ट दूर हो जाते हैं और जीवन धन-धान्‍य से पूर्ण हो जाता है.

क्या है अनंत चतुर्दशी व्रत का अर्थ

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चौदस को अनंत चतुर्दशी का पर्व होता है। इस दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत मानी जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप को समर्पित माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, आैर मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे। इन्हीं रूपों के चलते उनका स्वरूप अनंत प्रतीत होने लगा। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के इसी अनंत स्वरूप को प्रसन्न करने और अनंत फल पाने की इच्छा से व्रत रखा जाता है। धर्माचार्यों के अनुसार इस दिन व्रत रखने के साथ श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

अनंत चतुर्दशी के व्रत का बड़ा महत्‍व है इस दिन भगवान विष्‍णु के अनंत स्‍वरूप को पूजा जाता है  मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्‍ट दूर हो जाते हैं ।

अनंत चतुर्दशी के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु की अनंत रूप में पूजा की जाती है. इस दिन को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान के अनंत स्‍वरूप के लिए व्रत रखा जाता है. इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है. स्‍त्रियां दाएं हाथ और पुरुष बाएं हाथ में अनंत सूत्र धारण करती हैं. मान्‍यता है कि कि अनंत सूत्र पहनने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं. इसके अलावा अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी होता है. भक्‍त धूमधाम और नाच-गाने के साथ अपने प्‍यारे बप्‍पा को 10 दिन के बाद विदाई देते हैं. इस दौरान पूरा माहौल गणपति बप्‍पा मोरया की ध्‍वनि से गूंज उठता है.

मान्‍यता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन विष्‍णु के अनंत रूप की पूजा करने से भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माना जाता है कि इस दिन व्रत करने के अलावा अगर सच्‍चे मन से विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो धन-धान्‍य, उन्‍नति-प्रगति, खुशहाली और संतान का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है. इस दिन गणेश विसर्जन के साथ गणेश उत्‍सव का समापन होता है. वहीं, जैन धर्म में इस दिन को पर्यषुण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता है. अनंत चतुर्दशी भक्ति, एकता और सौहार्द का प्रतीक है. देश भर में इस त्‍योहार को धूमधाम से मनाया जाता है.

इस दिन महिलाएं सौभाग्य की रक्षा एवं सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए व्रत एवं उपवास करती है। अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत एवं उपवास का संकल्प करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु के समक्ष 14 ग्रंथी युक्त अनंत सूत्र यानी कि 14 गांठ वाला धागा रख कर श्री हरि के साथ उसकी भी पूजा करनी चाहिए। पूजन में रोली, मौली, चंदन, धूप, दीप आैर नैवेद्य का होना अनिवार्य है। इनको को समर्पित करते समय " ॐ अनंताय नमः " मंत्र का निरंतर जाप करें । भगवान विष्णु की प्रार्थना करके उनकी कथा का श्रवण करें। तत्पश्चात अनंत रक्षासूत्र को पुरुष बाएं हाथ और महिला बाएं हाथ में बांधें। बांधते समय अनंत देवता का ध्यान करते रहना चाहिए और अनंत-अनंत कहते रहना चाहिए। अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराये आैर यथोचित दान करें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें। अनंत चतुर्दशी को नमक रहित भोजन करना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम 1. यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए। 2. यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

अनंत चतुर्दशी ​ की पूजा विधि

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी के महात्‍म्‍य का वर्णन मिलता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्‍णु के अनंत रूप का पूजन होता है. इस व्रत की पूजा दिन के समय होती है. पूजा विधि इस प्रकार है. - सबसे पहले स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें. - इसके बाद मंदिर में कलश स्‍थापना करें. - कलश के ऊपर अष्‍ट दलों वाला कमल रखें और कुषा का सूत्र चढ़ाएं. आप चाहें तो विष्‍णु की तस्‍वीर की भी पूजा कर सकते हैं. - अब कुशा के सूत्र को सिंदूरी लाल रंग, केसर और हल्‍दी में भिगोकर रखें. - अब इस सूत्र में 14 गांठें लगाकर विष्‍णु जी को दिखाएं. - इसके बाद सूत्र की पूजा करें और इस मंत्र को पढ़ें-

"अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।। "

- अब विष्‍णु की प्रतिमा की षडोशोपचार विधि से पूजा करें. - पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधें. पुरुष इस सूत्र को बाएं हाथ और महिलाएं दाएं हाथ में बांधती हैं. - सूत्र बांधने के बाद यथा शक्ति ब्राह्मण को भोज कराएं और पूरे परिवार के साथ आप खुद भी प्रसाद ग्रहण करें.

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सुमंत नाम का एक विद्वान ब्राह्मण था. उसकी पत्‍नी का नाम दीक्षा थो जो बेहद धार्मिक विचारों वाली महिला थी. दोनों की एक बेटी थी जिसका नाम सुशीला था. जब सुशीला बड़ी हुई तो उसकी मां दीक्षा का निधन हो गया. सुशीला की परवरिश के लिए उसके पिता सुमंत को कर्कशा नाम की एक महिला से विवाह करना पड़ा. कर्कशा का व्‍यहार सुशीला के प्रति अच्‍छा नहीं था. लेकिन सुशीला में अपनी मां दीक्षा के गुण थे. वो अपनी मां की तरह ही धार्मिक प्रवृत्ति की थी. कुछ समय बाद सुशीला का विवाह कौणिडन्‍य ऋषि से किया गया. शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा अपने माता-पिता के साथ एक ही आश्रम में रहने लगा. कर्कशा का व्‍यवहार उनके प्रति अच्‍छा नहीं था जिस वजह से उन्‍हें आश्रम छोड़कर जाना पड़ा | आश्रम छोड़ने के बाद सुशीला और कौणिडन्‍य के लिए जीवन बेहद कठिन हो गया. न कोई आसरा था और न ही जीविका का साधन. दोनों काम की तलाश में एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर भटकने लगे. भटकते-भटकते दोनों एक नदी के तट पर पहुंचे, जहां उन्‍होंने रात को विश्राम किया. उसी दौरान सुशीला ने देखा कि वहां कई स्त्रियां सज-धज कर पूजा कर रही थीं और एक-दूसरे को रक्षा सूत्र बांध रही हैं. सुशीला ने उनसे व्रत का महत्‍व पूछा . वो सभी महिलाएं विष्‍णु के अनंत स्‍वरूप की पूजा कर रही थीं और अनंत सूत्र बांध रही थीं. उन्‍होंने बतया कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्‍ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सुशीला ने व्रत का विधि विधान से पालन किया और अनंत सूत्र पहनने के बाद भगवान विष्‍णु से अपने पति के कष्‍टों को दूर करने की प्रार्थना की. समय के साथ कौणिडन्‍य ऋषि का जीवन सुधरने लगा. व्रत के प्रभाव से उन्‍हें अब धन-धान्‍य की कमी नहीं थी. अगले साल फिर अनंत चतुर्दशी का दिन आया. सुशीला ने भगवान को धन्‍यवाद देने के लिए फिर से व्रत किया और अनंत सूत्र धारण किया. जब ऋषि कौणिडन्‍य ने धागे के बारे में पूछा तो सुशीला ने अनंत चतुर्दशी की महिमा बताई. साथ ही कहा कि सारा वैभव इस व्रत के प्रभाव से मिला है. यह सुनकर कौणिडन्‍य क्रोधित हो गए. ऋषि को लगा कि पत्‍नी उनकी मेहनत का श्रेय भगवान को दे रही हैं और गुस्‍से में आकर उन्‍होंने अनंत सूत्र तोड़ दिया. इस अपमान से दुखी अनंत देव ने धीरे-धीरे ऋषि कौणिडन्‍य से सबकुछ वापस ले लिया. पति-पत्‍नी फिर से जंगल-जंगल भटकने लगे. फिर उन्‍हें प्रतापी ऋषि मिले जिन्‍होंने बताया कि उनकी ये हालत भगवान के अपमान के कारण हुई है. तब ऋषि कौणिडन्‍य को अपने पाप का आभास हुआ और उन्‍होंने पत्‍नी के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान से अनंत चर्तुदशी का व्रत किया. उन्‍होंने कई सालों तक इस व्रत को किया और 14 साल बाद अनंत देव प्रसन्‍न हुए. भगवान ने ऋषि कौणिडन्‍य को दर्शन दिए और उनके जीवन में फिर से खुशियां लौट आईं.

मान्‍यता है कि भगवान कृष्‍ण ने पांडवों को अनंत चर्तुदशी की कथा सुनाई थी. पांडवों ने अपने वनवास में हर साल इस व्रत का पालन किया. कहा जाता है कि सत्‍यवादी राजा हर‍िशचंद्र को भी इस व्रत के प्रभाव से राज-पाट वापस मिल गया था.

जय श्री हरी जी

ॐ अनंताय नमः

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