Leo Love 2015
- 02 December 2014
नवसंवत्सर का महत्व सनातन धर्म का नव वर्ष चैत मास के प्रथम दिन यानि सोमवार ४ अप्रैल २०११ से शुरू होगा ! प्रत्येक वर्ष हिन्दू धर्म का नया साल चैत नवरात्र के प्रारंभ के साथ ही शुरू हो जाता है, इस नव वर्ष के राजा चन्द्र और मंत्री गुरु होंगे ! इस बार नवरात्र सोमवार से शुरू हो कर पुरे नौ दिन दिन तक रहेगा जिसको पूर्ण नवरात्र बोला जाता है, यह हर प्रकार से शुभ है ! इस नवरात्रों मे पूजन से सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होगी, चन्द्र और गुरु का साथ होने से सभी पर धन की वर्षा होगी ! नवसंवत्सर का महत्व ऐतिहासिक व धार्मिक दोनो दृष्टियों से है। हमारे देश में नवसंवत्सर का आरम्भ इसी दिन से होता है। ब्रह्य पुराण के अनुसार इस दिन ने ब्रह्या ने सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। अथर्ववेद के अनुसार सवत्सर रूप प्रजापति की अराधना का उल्लेख है। स्मृति कौस्तुम के लेखक के अनुसार इस दिन रेवती नक्षत्र के विष्कुम्भ योग के दिन के समय भगवान ने मत्स्य अवतार लिया था। यही सम्राट विक्रमादित्य के संवत्सर का प्रथम दिवस है। इसी तिथि से रात्रि के अपेक्षा दिन बडा होने लगता है। ज्योतिड्ढ गणना के अनुसार यही से चैत्री पंचाग की शुरूआत होती है। इस मास की पूर्णिमा का अन्त चित्रा नक्षत्र में होने से यह चैत्र मास नववड्ढर का प्रतीक हैं। इस दिन प्रातःकाल ब्रह्यमुहूर्त में स्नान करके हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प किया जाता है। फिर नई बनी चौकी या बालू की वेदी पर सफेद साफ कोरा कपडा बिछा कर उस पर हल्दी या केसर से रंगे हुये अक्षत का अष्टदल कमल बनाया जाता है। इस कमल पर सोने की प्रतिमा स्थापित करके ब्रह्यणेनमः से ब्रह्या का आवाहन करके पुष्प, दीप, धूप, नैवेध से पूजन किया जाता है। पूजा के अंत में अपने लिये ब्रह्या से सारे साल कल्याणकारी होने की प्रार्थना की जाती है। इस दिन नए वस्त्र धारण किये जाते हैं। घर ध्वज, पताका, और तोरण से सजाए जाते है, गृहस्थों के घरों में त्रिशुल की स्थापना की जाती हैं। प्याउ की स्थापना कराई जाती है। ब्रह्यणों को यथाशक्ति भोजन कराया जाता है। रामनवमी इसके बाद रामनवमी का त्यौहार पडता है, यह भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह मर्यादा पुरूड्ढोत्तम राम की जन्म तिथि है। अयोध्या नगरी में इसका बडा भारी मेला लगता है। दक्षिण भारत में भी यह पर्व बडी धूमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत में मध्य वापिनी तिथि ही लेनी चाहिये। अगस्त संहिता में इस आशय का लेख मिलता है कि यदि चैत्र शुक्ल नवमी पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त हो और मध्याहं वापिनी हो तो उसे महापुण्य वाली माननी चाहिये। अष्टमी विद्घा नवमी कभी भी नहीं मनानी चाहिये। इस तिथि को उपवास करना चाहिये और दशमी को पारण करना चाहिये। नवमी की रात्रि को जागरण करके रामायण की कथा सुननी चाहिये और दशमी की सुबह राम नाम का पूजन करना चाहियें। इसके बाद ब्राह्यणों को भोजन कराना चाहिये और गौ, भूमि, स्वर्ण, तिल, वस्त्र, अलंकार आदि अपनी सामथ्र्यानुसार दक्षिणा में देना चाहिये। आप सभी लोगों को हमारे परिवार की ओर से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये , आप सभी को इस नव वर्ष मे अपार खुशियाँ मिले ............................ अमित बहोरे एस्ट्रो प्रयाग