ज्योतिष सहायता शिविर
- 30 June 2016
कालरात्रि -
व्यपार सम्बन्धी बाधा दूर करने के लिए माता कालरात्रि की आराधना की जाती है |
माँ दुर्गा का सातवाँ स्वरुप कालरात्रि कहलाता है | नवरात्री के सातवें दिन इसी स्वरुप में आपका पूजन अर्चन किया जाता है | माता कालरात्रि का रूप अत्यंत ही विकराल है माता का रंग अंधकार की तरह काला है, सर के केश बिखरे हुए हैं, गले में विधुत की चमचमाती माला है ! माता चार भुजाओं और तीन नेत्रों वाली हैं माता के ऊपर वाले बाएं हाथ में लोहे का कांटा है और नीचे वाले में खडग है दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में और उपाय वाला हाथ वर मुद्रा में है | साँस लेने से माता की नासिका से अग्नि की लपटें निकलती हैं ! माता का वाहन गधा है ! आपका आराधक शुभ फलों को प्राप्त करता है ! माता विकराल होने के बाद भी शुभ फल प्रदान करती हैं इसलि लिए इनको "शुभंकरी" भी कहा जाता है | आकाल मृत्यु से बचने के लिए भी माता कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए |
हाथ में पुष्प ले कर माता का ध्यान करें - माता का ध्यान करते समय उनके विकराल रूप से डरने की आवश्यकता नहीं है माता पूर्ण कल्याणकारी है -
ध्यान मंत्र
कराल रूपा कालाब्जा समानाकृति विग्रहा। कालरात्रि शुभं दधद् देवी चण्डाट्टहासिनी॥
ध्यान मंत्र के बाद माता के चरणों में पुष्प अर्पित करें, इसके बाद पंचोपचार पूजन के बाद नैवेद्य अर्पित करें और निम्न मात्र की नौ माला अथवा १०८ बार जप करें -
" लीं क्रीं हुं "
मंत्र जप के पश्चात अपनी मनोकामना व्यक्त करें और आरती स्तवन करें |