Grah


देवों के देव महादेव हैं अद्वितीय...

देवों के देव महादेव हैं अद्वितीय...

भारत के गरिमायुक्त ग्रंथ शिवपुराण में शिव और शक्ति में समानता बताई गई है और कहा गया है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत रहती है। न तो शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व है और न शक्ति के बिना शिव का। शिव पुराण में यह भी दर्ज है कि जो शक्ति संपन्न हैं, उनके स्वरूप में कोई अंतर नहीं मानना चाहिए। भगवती पराशक्ति उमा ने इंद्र-आदि समस्त देवताओं से स्वयं कहा है कि ‘मैं ही परब्रह्म, परम-ज्योति, प्रणव-रूपिणी तथा युगल रूप धारिणी हूं। मैं ही सब कुछ हूं। मुझ से अलग किसी का वजूद ही नहीं है। मेरे गुण तर्क से परे हैं। मैं नित्य स्वरूपा एवं कार्य कारण रूपिणी हूं।’ स्पष्ट है कि विविध पुराणों में विशुद्ध रूप से वर्णित शिव-शक्ति समस्त चराचर के लिए मंगलकारी और कल्याणकारी यानी शुभ है।

सिर्फ शिव ही हैं, जो बंधन, मोक्ष और सुख-दुख के नियामक हैं। चराचर जगत के वे ही गुरु हैं। यही कारण है कि शिव प्रकृति से परे साक्षात अद्वितीय पुरुष के नाम से जाने-माने जाते हैं, जो अपनी अंश कला से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र रूप में संसार के सृजनकर्ता, पालक और संहारक हैं। शिव रूप रहित जरूर हैं, मगर संसार के कारण वही हैं। शिव ही वह शक्ति हैं, जो सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा का रूप धारण करते हैं तथा प्रलय के समय साक्षात शिव रूप में विराजमान हो जाते हैं। ब्रह्माजी के रूप में सृष्टि का निर्माण इसलिए करते हैं कि प्राणियों को चौरासी लाख योनियों में भटकना न पडे। विष्णुजी के रूप में सृष्टि का पालन-पोषण इसलिए करते हैं, ताकि प्रलय न हो यानी समय से पहले ही प्राणी समाप्त न हो जाएं। इस प्रकार अगर भगवान शंकर संहार करना बंद कर दें, तो प्राणी अमर हो जाएंगे और जब कोई मरेगा नहीं, तो ब्रह्माजी को अपनी सृष्टि की रचना के लिए जगह की तंगी हो जाएगी। साथ ही साथ विष्णुजी भी पालन-पोषण करने में असमर्थ हो जाएंगे। अतः भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान व देवों के देव ‘महादेव’ कहा गया है। इससे सिद्ध हो जाता है कि जो पैदा हुआ है, उसे एक न एक दिन इस दुनिया को छोडना ही पडेगा, चाहे वे भगवान के अवतार ही क्यों न हों? शास्त्रों में कहा गया है कि आत्मा अमर-अविनाशी है। यह चौरासी लाख योनियों में बाहरी जिस्म का परित्याग कर भटकती रहती है। इस जीने-मरने से मुक्ति पाने का एकमात्र मार्ग है, भक्ति। जो शिव-शक्ति की कृपा से ही प्राप्त होती है। सीधे अर्थों में हम भगवान शिवजी को ही शिव के रूप में लेते हैं।

भगवान शिवजी और शिव में क्या अंतर है? कर्तव्य के पथ पर सत्य ही शिव है। लोकमंगल ही शिव है। शिवजी के गले में विषैला सर्प है। वे अपने गले में विष धारण करते हैं। वे सुंदर हैं और माथे पर चंद्रमा और पावन गंगा को धारण किए हुए हैं। अमंगल को सुंदर और शुभ बना देना ही शिवत्व है। समुद्र मंथन में एरावत हाथी, अमृत व हलाहल आदि चौदह रत्न निकले थे। हलाहल को छोड बाकी तेरह रत्नों को सुरों व असुरों ने आपस में बांट लिया था। हलाहल का पान स्वयं भगवान शंकर ने किया। उन्होंने विष को गले में ही रहने दिया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। जहर के असर को कम करने के लिए अपने सिर पर चंद्रमा को धारण कर लिया। भगवान शिव ने अपने भक्तों की भलाई के लिए विष का पान किया। शिव कल्याण स्वरूप हैं। सुखदाता हैं। दुख दूर करने वाले हैं। भक्तों को प्राप्त होने वाले हैं। श्रेष्ठ आचरण वाले हैं। संहारकारी हैं। कल्याण के निकेतन हैं। वे प्रकृति और पुरुष के नियंत्रक हैं

Comments (0)

Leave Reply

Testimonial



Flickr Photos

Send us a message


Sindhu - Copyright © 2024 Amit Behorey. All Rights Reserved. Website Designed & Developed By : Digiature Technology Pvt. Ltd.