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भाई-भिन्ना

खत्रियों का त्योहार

भाई-भिन्ना

भाई-भिन्ना उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक प्रचलित त्योहार है, विशेष तौर पर खत्री लोगों के यहाँ इसको मनाया जाता है |

भाद्रपद कृष्णपक्ष  की  पंचमी को भाई-भिन्ना मनाया जाता है |

इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है |

 

सर्वप्रथम साँपों को दूध पिलाया जाता है, उसके बाद घर में मंदिर में दीवार के एक हिस्से पर गेरू से पोता जाता है और दूध में कोयला पीस कर चौकोर सी घर के आकर में आकृति बनायीं जाती है | उस आकृति के अन्दर पांच सांप की आकृति बनायीं जाती है | इसके बाद साँपों को जल, कच्चा दूध, रोली, अक्षत, चना और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा भी चढ़ाई जाती है | इस दिन महिलाएं व्रत करती है और चने और चावल का बना बासी खाना खाती हैं इसको करने से घर के पुरुषों की विपत्तियों से रक्षा होती है | इस पूजन को घर का कोई पुरुष नहीं देखता है |

इसके बाद कथा कही जाती है |

कथा के बाद

 इस दिन बहनें अपने भाई को टिका लगाती हैं, मिठाइयाँ देती हैं और भाई बहन को शगुन के तौर पर रूपये और गिफ्ट देते हैं |

कथा इस प्रकार है

 एक साहूकार के साथ पुत्र थे, सातों विवाहित थे सबसे छोटी बहु  का कोई भी भाई नहीं था | एक दिन बड़ी बहु ने घर को लीपने के लिए तो सभी बहुओं से पिली मिटटी लाने को कहा, सभी बहुएं डलिया और खुरपी ले कर खेत की ओर चल दी | मट्टी खोदते समय बड़ी बहु को एक बड़ा सर्प दिखाई दिया, बड़ी बहु खुरपी से उस सर्प को मारने के लिए आगे बढ़ी तो छोटी बहु बोली- " मत मारो इसे ये बेचारा निरीह जीव है " बड़ी बहु ने सर्प को छोड़ दिया | सर्प एक ओर जा कर बैठ गया,  छोटी बहु सर्प से बोली " तुम यही बैठे रहो हम मट्टी घर में रख कर आते हैं " छोटी बहु सबके साथ मिटटी ले कर घर चली गयी और घर के काम काज में व्यस्त हो कर सर्प से किये वादे को भूल गयी |

दुसरे दिन छोटी बहु को अपना वायदा याद आया तो सभी को ले कर वो सर्प के पास पहुंची तो देखा सर्प वहीँ बैठा था | छोटी बहु बोली " सर्प भैया नमस्कार !" इस पर सर्प ने कहा " तू भैया बोल चुकी है इसलिए मैं तुझे छोड़ देता हूँ वरना झूठ बोलने के कारण तुमको डस लेता " वह बोली " भैया मुझसे भूल हो गयी उसकी मैं क्षमा मांगती हूँ "इस पर सर्प बोला " आज से तू मेरी बहन हो गयी है और मैं तुम्हारा भाई हुआ तुझे जो मांगना हो मांग ले " वह बोली भैया मेरा कोई भाई नहीं है अच्छा हुआ तुम मेरे भाई बन गए "

कुछ समय बाद वही सर्प मनुष्य बन के उसके ससुराल पहुंचा और बोला की मेरी बहन को भेज दो ! सबने कहा की इसके तो कोई भाई नहीं था तो वो बोला मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ बचपन में ही बाहर चला गया था | उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहु को उसके साथ भेज दिया | उसने मार्ग में बताया की मैं वही सर्प हूँ तुम डरना मत बहन ! और तुझे जहाँ चलने में कठिनाई हो मेरी पूंछ पकड़ लेना, बहन ने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वो सर्प भाई के घर पहुँच गयी | वहां के धन-एश्वर्य को देख कर छोटी बहु चकित हो गयी | एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा की मैं किसी काम से बाहर जा रही हूँ तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना | उसे यह बात ध्यान ना रही और उसने गरम दूध पिला दिया, जिससे उसका मुख बड़ी बुरी तरह जल गया | अपने बेटे का हाल देख कर सर्प माता बहुत क्रोधित हुई, परन्तु सर्प के समझाने पर चुप हो गई | सर्प ने कहा बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए तो सर्प के पिता ने उसे बहुत सा स्वर्ण, रत्न, आभूषण वस्त्र इत्यादि दे कर विदा कर दिया |

इतना सब धन दौलत देख कर बड़ी बहु ने इर्ष्या से कहा की "तेरा भाई तो बहुत धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए |" सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की ला कर दे दिन | तो बड़ी बहु बोली की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए तो सर्प ने झाड़ू भी सोने की ला कर दे दी | सर्प ने छोटी बहु को हीरा-मणियों का अद्भुत हार भी ला कर दिया | इस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी वह राजा से बोली की साहूकार की बहु का हार यहाँ आना चाहिए | राजा ने मंत्री को हुक्म दिया की साहूकार की बहु का हार ले कर शीघ्र उपस्थित हो | मंत्री ने साहूकार से जा कर कहा की " छोटी बहु का हार रानी साहिबा पहनेगी वह मुझे दे दो "| साहूकार ने डर के कारण छोटी बहु से वो हार मांग कर दे दिया | छोटी बहु को यह बात बुरी लगी उसने अपने सर्प भाई को याद किया और उससे आने की प्रार्थना की भैया रानी ने हार छीन लिया है कुछ ऐसा करो की जब तक रानी के गले में वो हार रहे वो सर्प बन जाए मेरे गले में आते ही वो हीरों और मणियों का हो जाए | सर्प ने वैसा ही किया, रानी ने जैसे ही वह हार पहना वो हार सर्पों का हो गया यह देख कर् रानी चीख पड़ी और रोने लगी | यह देख कर राजा ने साहूकार को खबर किया की छोटी बहु को तुरंत भेजो | साहूकार डर गया और छोटी बहु के साथ स्वयं राजा के पास पहुंचा | राजा ने छोटी बहु से कहा, तूने क्या जादू किया है, जो ये हार सर्प में बदल गया | मैं तुझे दंड दूंगा !"

छोटी बहु बोली,' मुझे क्षमा करें महराज ! यह हार जब तक मेरे गले में रहता है हीरे और मणियों का रहता है और जब किसी और के गले में जाता है तो सर्प बन जाता है | तो राजा ने उस सर्प वाले हार को छोटी बहु को देते हुए कहा की मुझे अभी पहन के दिखाओ | छोटी बहु ने जैसे ही पहना वैसे ही हार हीरे और मणियों का हो गया, ये देख कर राजा को विश्वास हो गया और प्रसन्न हो कर राजा ने उसके बहुत सी मुद्राएं दी | छोटी बहु अपने हार और धन को ले कर घर आई | यह देख कर बड़ी बहु ने इर्ष्या से छोटी बहु के पति से कहा कि," छोटी बहु के पास पता नहीं कहाँ से धन आया है इसको पता नहीं किसने धन दिया है ?" उसके पति ने कहा ठीक ठीक बता यह धन कहाँ से आया है यह धन तुझे कौन देता है | यह सुन कर छोटी बहु सर्प को याद करने लगी तभी सर्प तुरंत प्रकट हो कर बोला जो मेरे धर्म बहन की आचरण पर शक करेगा उसे मैं तत्काल खा जाऊंगा | तब छोटी बहु का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प का बहुत सत्कार किया | उसी दिन से यह त्योहार मनाया जाता है | स्त्रियाँ सर्प को अपना भाई मान कर पूजा करती है |

 इस पर्व को खत्री लोग भाई भिन्ना के नाम से मनाते हैं, भारत की विभिन्न क्षेत्रों में इसको गोगा पंचमी,  भाई पांचे के नाम से जाना जाता है |

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