मकर संक्रान्ति के विविध रूप
- 12 January 2014
बृहस्पति का नाम
संस्कृत- प्रशांत, देवगुरु, सुरगुरु, सुराचार्य, देवाचार्य, वाचस्पति, अंगिरा, आर्य, जीव, देवेज्य आदि
अंग्रेजी- Jupiter (ज्यूपिटर )
उर्दू - मुश्तरी
वर्ण – पीत (गौर वर्ण )
अवस्था – वृद्ध
लिंग – पुरुष
जाति – ब्राह्मण
स्वरुप – स्थूल (भूरे केश युक्त )
गुण – सत्त्व
तत्त्व- आकाश
प्रकृति – समधातु
दिशा- ईशान (NE )
धातु – चाँदी (मतान्तर से स्वर्ण)
रत्न – पुखराज (Yellow Sapphire )
बृहस्पति को काल-पुरुष का ज्ञान माना गया है, अतः यह ज्ञान का प्रतीक है | ग्रह मंडल में इससे मंत्री पद प्राप्त है | बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं इसलि लिए इनको देवगुरु भी कहते हैं |
आधिपत्य- बृहस्पति को विवेक, बुद्धि, ज्ञान, पारलौकिक-सुख, स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता, उदारता, धर्म, न्याय, सिद्धांतवादिता, उच्चाभिलाषा, शांत-स्वाभाव, राजनीतिज्ञता, पुरोहित्तव, मंत्री तत्व, यश, सम्मान, जीव का अधिपति माना गया है |
बृहस्पति से प्रभावित अंग
मनुष्य-शरीर में कमर से जंघा तक बृहस्पति का अधिकार क्षेत्र है | ह्रदय कोष सम्बन्धी रोग, क्षय, मूर्छा, गुल्म, मोटापा, कफ और चर्बी सम्बन्धी रोग देता है |
बृहस्पति को शुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है , यह सूर्य और चन्द्र की तरह हमेशा ‘ मार्गी ‘ नहीं रहता, अपितु समय समय पर मार्गी, वक्री तथा अस्त होता रहता है | इसकी स्व-राशियाँ धनु और मीन हैं | यह कर्क राशि में उच्च का, मकर राशि में नीच का तथा धनु राशि में 10 अंश तक मूलत्रिकोणस्थ होता है | ( कर्क राशि में 5 अंश तक परमोच्च और मकर में 5 अंश तक परम नीच का होता है )
मित्र और शत्रु
सूर्य, चन्द्र और मंगल बृहस्पति के नैसर्गिक मित्र हैं |
शनि, राहु और केतु से समभाव रखता है |
बुध और शुक्र से इसकी नैसर्गिक शत्रु हैं |
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