आस्था का मजाक
- 12 May 2011
कृष्ण यजुर्वेदीय इस उपनिषद में चक्षु रोगों को दूर करने की सामर्थ्य का वर्णन किया गया है। इन रोगों को दूर करने के लिए सूर्यदेव से प्रार्थना की गयी है। प्रार्थना में कहा गया है कि सूर्यदेव अज्ञान-रूपी अन्धकार के बन्धनों से मुक्त करके प्राणि जगत को दिव्य तेज़ प्रदान करें। इसमें तीन मन्त्र हैं। इस चक्षु विद्या के मन्त्र-दृष्टा ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं। इसे गायत्री छन्द में लिखा गया है। नेत्रों की शुद्ध और निर्मल ज्योति के लिए यह उपासना कारगर है। ऋषि उपासना करते हैं-'हे चक्षु के देवता सूर्यदेव! आप हमारी आंखों में तेजोमय रूप से प्रतिष्ठित हो जायें। आप हमारे नेत्र रोगों को शीघ्र शान्त करें। हमें अपने दिव्य स्वर्णमय प्रकाश का दर्शन करायें। हे तेजस्वरूप भगवान सूर्यदेव! हम आपको नमन करते हैं। आप हमें असत से सत्य की ओर ले चलें। आप हमें अज्ञान-रूपी अन्धकार से ज्ञान-रूपी प्रकाश की ओर गमन करायें। मृत्यु से अमृत्त्व की ओर ले चलें। आपके तेज़ की तुलना करने वाला कोई अन्य नहीं है। आप सच्चिदानन्द स्वरूप है। हम आपको बार-बार नमन करते हैं। विश्व-रूप आपके सदृश भगवान विष्णु को नमन करते हैं।'
विनियोग ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम् नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षुरोग निवृत्तये जपे विनियोगः
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितम् चक्षुरोगान् शमय शमय। ममाजातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहमंधोनस्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याण कुरु कुरु यानि मम् पूर्वजन्मो पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय। ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः कल्याणकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः। खेचराय नमः महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः । असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मां अमृतं गमय। उष्णो भगवान्छुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः । ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्। सहस्त्र रश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः।। ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय आदित्याया अक्षि तेजसे अहो वाहिनि वाहिनि स्वाहा।। ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुम् उग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिः भवति। विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः। शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय।। ।।इति स्तोत्रम्।।
मंत्र का अर्थ: हे सूर्यदेव! हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव! आप आंखों में चक्षु के तेजरूप् से स्थिर हो जाएं. मेरी रक्षा करें, रक्षा करें। मेरी आँख के रोगों का शीघ्र नाश करें, शमन करें। मुझे अपना सुवर्ण जैसा तेज दिखला दें, दिखला दें। जिससे मैं अंधा न होऊं, कृपया ऐसे उपाय करें। मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। दर्शन शक्ति का अवरोध करने वाले मेरे पूर्वजन्म के जितने भी पाप हैं, सबको जड़ से समाप्त कर दें, उनका समूल नाश करें। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान् सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी को नमस्कार है. परम श्रेष्ठ स्वरूप को नमस्कार है. सब में क्रिया शक्ति उत्पन्न करने वाले रजो गुणरूप भगवान् सूर्य को नमस्कार है. अन्धकार को अपने भीतर लीन कर लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत भगवान् सूर्य को नमस्कार है. हे भगवान् ! आप मुझे असत् से सत् की ओर ले चलिए. मृत्यु से अमृत की ओर ले चलिए. ऊर्जा स्वरूप भगवान् आप शुचिरूप हैं. हंस स्वरूप भगवान् सूर्य आप शुचि तथा अप्रतिरूप हैं- आपके तेजोमय स्वरूप की कोई बराबरी नहीं कर सकता. जो सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, जो किरणों में सुशोभित एवं जातवेदा (भूत आदि तीनों कालों की बातें जानने वाला) हैं, जो ज्योति स्वरूप, हिरण्मय (स्वर्ण के समान कान्तिवान्) पुरूष के रूप में तप रहे हैं, इस सम्पूर्ण विश्व के जो एकमात्र उत्पत्ति स्थान हैं, उस प्रचण्ड प्रतापवाले भगवान् सूर्य को हम नमस्कार करते हैं. वे सूर्यदेव समस्त प्रजाओं के समक्ष उदित हो रहे हैं. षड्विध ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् आदित्य को नमस्कार है. उनकी प्रभा दिन का भार वहन करने वाली है, हम उन भगवान् को उत्तम आहुति अर्पित करते हैं. जिन्हें मेधा अत्यन्त प्रिय है, वे ऋषिगण उत्तम पंखों वाले पक्षी के रूप में भगवान् सूर्य के पास गए और प्रार्थना करने लगे- ‘भगवन्! इस अन्धकार को छिपा दीजिये, हमारे नेत्रों को प्रकाश से पूर्ण कीजिये तथा अपना दिव्य प्रकाश देकर मुक्त कीजिए. जो इस चक्षुष्मतीविद्या का नित्य पाठ करता है, उसे नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होते. उसके कुल में कोई अंधा नहीं होता.