Disha Shool
- 12 April 2011
रक्षा-बंधन केवल भाई बहन का त्यौहार नहीं
रक्षा बंधन का त्यौहार सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है |
इस वर्ष 18 अगस्त 2016 गुरुवार के दिन रक्षा बंधन का पवित्र कार्य होगा।क्योंकि पूर्णिमा 17-अगस्त की शाम से ही लग गयी और भद्रा भी 17 को ही लग जा रही है, इसलिए 18-अगस्त 16 सुबह से ले कर दोपहर 2:56 मिनट तक का समय उपयुक्त रहेगा |
विशेष शुभ समय 13:23 से 14:56
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं परंतु ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बांधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठत व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है।
रक्षा-बंधन का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्योक्त पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। देवराज इन्द्र घबरा कर देव गुरु बृहस्पति के पास गये। तब देव गुरु बृहस्पति की सलाह पर इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह सावन पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थ्रना की। तब भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है।[कहते हैं कि जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मीजी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
रक्षा बंधन त्यौहार बहुत पहले से चला आ रहा है | अब इसका स्वरुप बदल गया है, अब इसे केवल भाई-बहन का त्यौहार के रूप में प्रचारित किया जाता है | जबकि कोई भी स्त्री राखी अपने भाई, पिता अथवा अपने पति को भी बाँध सकती है |