Navratri 'प्रथम दिवस'
- 19 September 2014
श्रावण मास- देवादिदेव महादेव को प्रसन्न करने का सबसे सुन्दर मास
श्रावण / सावन मास में महादेव की स्वयं अभिषेक विधि
अभिषेक सामग्री: दूध, दही, घी, शहद, खांड अथवा चीनी, गंगाजल, भस्म, बेल-पत्र, धतूरा, भांग, चन्दन, केसर, कर्पूर, मंदार-पुष्प, अक्षत(चावल बिना टूटे), इत्र, जनेउ, तुलसी मंजरी, अभिषेक के लिए सामग्री (गंगाजल, दूध, या जिस पदार्थ से अभिषेक करना हो )
विधि: श्रावण में किसी भी दिन या समय पर अभिषेक आपको पूर्ण फल देता है, महादेव के पूजन में वस्त्र शुद्धि से जायदा भाव शुद्धि का महत्व होता है अगर उपलब्ध हो तो श्वेत वस्त्र पहनें। अगर सोमवार के व्रत रखें तो अति उत्तम होगा। पूजा की सम्पूर्ण सामग्री लेकर शिव मंदिर जाएँ (भक्तगण घर पर भी शिव पूजा कर सकते हैं)। सर्वप्रथम गौरी-गणेश का पूजन करें।
अभिषेक के समय श्रीरुद्राष्टकम अथवा शिवतांडवस्तोत्रम का पाठ शिव को अत्यंत प्रसन्नता प्रदान करता है। परन्तु अगर आप इनका पाठ नहीं कर सकते तो "ॐ नमः शिवाय" का ही जप करें। यह शिव का सबसे सुन्दर तथा आसान मंत्र है। सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करें जलस्नान के बाद शिवलिंग को दूध से स्नान कराएं। फिर से जल से स्नान कराएं। दही स्नान के बाद घी स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। घी या घृत स्नान के बाद मधु यानी शहद से स्नान कराएं।
शहद से स्नान कराकर जल से स्नान कराएं। शहद स्नान के बाद शर्करा या शक्कर से स्नान कराया जाता है। इसके बाद जल स्नान कराएं। आखिर में सभी पांच चीजों को मिलाकर पंचामृत बनाकर स्नान कराएं। पंचामृत स्नान के बाद शुद्धजल से स्नान कराएं। फिर कर्पूर से सुगंधित शीतल जल चढ़ाएं। केसर को चंदन से घिसकर तिलक लगाएं। थोड़े से अक्षत(चावल बिना टूटे) अर्पित करें, पंचामृत पूजा के बाद बाबा को इत्र लगायें, जनेउ पहनाएं और भस्म लगायें ,धतूरा, भांग, बिल्वपत्र, अक्षत, पुष्प और गंध चढ़ावें। इसके बाद धूप, दीप और नैवेद्य भगवान शिव को अर्पित करें। उसके बाद नंदीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय, कुबेर और कीर्तिमुख का पूजन करें। अंत में पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांग और अपनी कामनाओं के लिए शिव से प्रार्थना करें।
मंत्र: 1. “ॐ नमः शिवाय”
2. “ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll”
3. “ऊँ त्रयम्बकम यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात ॥”