Navratri 'चतुर्थ दिवस'
- 19 September 2014
भाई दूज का त्योहार भाई बहन के पवित्र सम्बन्ध को सुदृढ़ करता है।
भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है जो दीपावली के दो दिन बाद आती है |
'भाई दूज' को भैया दूज और यम-द्वितीया भी कहते हैं । इसमें बहनें भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं।
भाई दूज भाई- बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है, इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।
इस दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है।
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ल द्वितीया का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि हे भाई यमराज ! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
भाई दूज पर भाई को अपने बहन के घर जाना चाहिए,
बहन को भाई की यथा संभव खातिरदारी करनी चाहिये और अपने हाथ का बना व्यंजन उसको खिलाना चाहिए |
बहन को रोली द्वारा भाई के माथे पर तिलक कर के लावे को अक्षत के स्थान पर टीके पर लगा देना चाहिए |
भाई को अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए |