Scorpio Love 2015
- 01 December 2014
अनेक श्रद्धालु जन की उत्सुकता को देखते हुए रुद्राभिषेक का विवेचन प्रस्तुत कर रहा हूँ.
अपने अंतिम पार्थिव अवतार “घुश्मेश्वर” जो महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास एलोरा गुफा के पास है, के बाद भगवान शिव ने यह स्पष्ट कर दिया था कि -
“निसर्गोद्भूतो लिंगम पारदम वा विशेषतः. पुष्यार्के सविधानेन समंत्रेणाभिशिन्चितम.
भवसूक्तेन कृतमभिषेकम सर्वारिष्टं विनाशयति. न दारिद्र्यदुखमवशेषम किन्चिद्देवी विराजती”
अर्थात मेरे स्वयंभू लिंग स्वरुप या दूसरे शब्दों में द्वादश ज्योतिर्लिंग में से किसी एक का या विशेष रूप से पारद शिवलिंग का पुष्यार्क औषधियो से मंत्रो के साथ जो अभिषेक करता है. विशेष रूप से भाव सूक्त या शिव सूक्त से किया गया अभिषेक सब दुःख, विघ्ना, बाधा, कष्ट, अरिष्ट आदि का नाश करता है. किसी तरह का दुःख दारिद्र्य शेष नहीं रह जाता. इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है. किन्तु यदि पारद (Mercury) के शिव लिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है.
ध्यान रहे यह भारत भूमि का अहोभाग्य है कि उसे उत्कृष्ट एवं अतिविशाल हिमालय के रूप में एक विशाल काय शिवलिंग प्राप्त है जिसका नैसर्गिक अभिषेक सतत होता रहता है तथा उससे बह कर आने वाला जल विविध नदियों के माध्यम से हमें प्राप्त होता है जिसमें अनेकानेक औषधिया तथा पराभौतिक शक्ति स्वरुप विद्युत् हमें प्राप्त होती है. यह तो प्रत्यक्ष है जिसे हम सब अपनी नंगी आँखों से नित्य प्रति हज़ारो लाखो वर्षो से देखते चले आ रहे है. यही कारण है कि आज भारत में कम बल्कि विदेशो में विशेषतः दक्षिणी अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया के पूर्वी प्रान्तों में शिवलिंग अभिषेक का बहुत प्रचलन है. तथा यह अभिषेक हिन्दुओ से ज्यादा ईसाई लोग ज्यादा कराते है. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि कावा (बगदाद) में हज करने के बाद हाजी लोग जो विशालकाय लिंग के आकार के काले पत्थर की प्रदक्षिणा करके उससे निकल कर बहने वाले जल को चमड़े की थैली में भर कर लाते है तथा अपने घरो में छिड़कते है तथा उसे आब-ए-ज़मज़म कहते है वह स्वाभाविक रूप से उस लिंग के आकार के पत्थर के होने वाले अभिषेक का जल ही है.
प्रायः शिवलिंग पत्थरो के ही पाये जाते है. विविध पत्थरो के शिवलिंग के पूजन का विधान विविध रूप में बताया गया है. जैसे मिट्टी एवं हिमलिंग का अभिषेक नहीं करना चाहिए. प्रत्यक्षतः संभव भी नहीं है. कारण यह है कि बर्फ एवं मिट्टी का बना शिवलिंग अभिषेक करते ही गल कर नष्ट हो जाएगा. सोने एवं चांदी के बने शिवलिंग पर दही नहीं चढ़ाना चाहिए. कारण यह है कि इससे डाई अमोनियम क्लोरो फास्फेट नामक हानि कारक गैस निकलती है. जैसा कि कहा है-
“मृत्तिका भूतो वा लिंगम हिम खंडं प्रति भूयताम. नाभिषेको कान्चंरूपम रजत नवनीतम खलु .”
सफ़ेद पत्थर के शिवलिंग पर सिन्दूर, स्फटिक के शिवलिंग पर घी, काले पत्थर अर्थात ग्रेनाईट के शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए. अष्ट धातु के शिव लिंग पर रक्त नहीं चढ़ाना चाहिए.
अभिषेक के लिए जिस शिवलिंग को चुना गया है उसके लिए विहित एवं निर्दिष्ट पदार्थो से ही अभिषेक करना चाहिए. लेकिन देखने में आया है कि लोग लकीर के फकीर बने रह कर कही जो एक चीज़ देख लिए उसे ही सब जगह लागू मान लेते है. मै बिना नाम लिए यह बताना चाहूंगा कि अभी मात्र एक डेढ़ महीना पहले भारत सरकार के मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री मुझसे रुद्राभिषेक के लिए संपर्क किये. मैंने उन्हें अभिषेक की औषधिया लिखवाई. लेकिन मैंने उसमें सुगंध, अष्टगंध एवं घी नहीं लिखा था. उन्होंने हंस कर कहा कि पंडित जी अभी आप को रुद्राभिषेक का पूरा ज्ञान नहीं है. आप सिर्फ ज्योतिष के अच्छे पंडित है. मैंने हामी भर दी. कारण यह था कि वह एक प्रतिष्ठा लब्ध उच्च स्तरीय व्यक्ति थे. उनकी बात को गलत कैसे कहू? तथा इतने बड़े आदमी से वाद विवाद करने से उनकी नाराज़गी ही मिलेगी. लेकिन इतना मैंने ज़रूर कह दिया कि आप का समय कुछ विपरीत प्रारम्भ हो गया है. दश जुलाई को उन्हें जेल हो गया. बेचारे तिहाड़ जेल में है.
शास्त्रों में जो बात लिखी गयी है उसे ध्यान पूर्वक एवं पूरा पूरा पढ़ना चाहिए. उसके बाद सोच विचार कर उसका पालन करना चाहिए. आधे अधूरे नहीं पढ़ने चाहिए. नहीं तो जिस तरह द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर की पूरी बात नहीं सुनी तथा केवल सुना कि “अश्वत्थामा मरो” और आगे की बात “नरो वा कुंजरो” नहीं सुने तथा इसीलिए शोक में उनके प्राण निकल गए. वही स्थिति हमारे साथ भी हो सकती है.
चाहे कुछ भी हो, रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है. इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है. पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है. यहाँ तक कि रावण ने अपने दशो सर काट कर उस रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया तथा सिरों को हवन की आग में झोंक दिया. तो वह त्रिलोक जयी हो गया. भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आँखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया. यह तो पौराणिक बातें हुई. वर्त मान में इससे लाभान्वित होने वाले लोगो की एक लम्बी फेहरिस्त है. इसको आज का चिकित्सा विज्ञान भी प्रामाणिक मानता है.
रुद्राष्टाध्यायी के वैदिक मंत्रो से इसके अभिषेक की परम्परा है. किन्तु ऐसा कोई प्रति बंध नहीं है. रावण कृत तांडव स्तोत्र से भी अभिषेक किया जा सकता है. केवल पुरुष सूक्त से भी अभिषेक हो सकता है. किसी भी मंत्र से अभिषेक किया जा सकता है. शास्त्रों में इसकी भरपूर स्वंत्रता दी गयी है. केवल अभिषेक सामग्री पर ध्यान देना आवश्यक होता है. जो विविध अभिषेक से सम्बंधित पुस्तकों में वर्णित रहती है.
वर्त्तमान समय में जब अंध विश्वास, ढोंग एवं पाखण्ड चरम सीमा पर है, अभिषेक एक ऐसा साधन है जिसे बहुत ही साधारण तरीके से पूरा किया जा सकता है. ध्यान यही रखना है कि सामग्री उचित हो. उचित सामग्री का होना जरूरी है. उचित सामग्री में से कोई सामग्री कम है तो कोई बात नहीं. किन्तु अनुचित सामग्री नहीं होनी चाहिए.
शिव और रुद्र परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रुद्र इसलिए कहा जाता है-रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: ये दु:खों को नष्ट कर देते हैं। सब धर्मग्रंथों का यह साफ-साफ कहना है कि हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चनऔर रुद्राभिषेक से पातक भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है। रुद्र के पूजन से सब देवताओं की पूजा स्वत:सम्पन्न हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद्में लिखा है-सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
प्राचीनकाल से ही रुद्र की उपासना शुक्लयजुर्वेदीयरुद्राष्टाध्यायीके द्वारा होती आ रही है। इसके साथ रुद्राभिषेक का विधान युगों से वांछाकल्पतरुबना हुआ है। साम्बसदाशिवअभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है-शिव: अभिषेकप्रिय:।शिव जी को पूजा में अभिषेक सर्वाधिक प्रिय है।
शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूíत के लिए रुद्राभिषेक के निमित्त अनेक द्रव्यों का निर्देश किया गया है। जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है। असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदकसे रुद्राभिषेक करें। भवन-वाहन प्राप्त करने की इच्छा से दही तथा लक्ष्मी-प्राप्ति का उद्देश्य होने पर गन्ने के रस से अभिषेक करें। धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें। तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। पुत्र की इच्छा करनेवालादूध के द्वारा रुद्राभिषेक करे। वन्ध्या,काकवन्ध्या(मात्र एक संतान उत्पन्न करनेवाली) अथवा मृतवत्सा(जिसकी संतानें पैदा होते ही मर जायं)गोदुग्धसे अभिषेक करे। ज्वर की शांति हेतु शीतल जल से रुद्राभिषेक करें।
सहस्रनाम-मंत्रोंका उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है। प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेकसे हो जाती है। शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है। सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है। शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है। पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें। गोदुग्धसे निíमत शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यताप्राप्त होती है। पुत्रार्थी शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंगका विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट निश्चय ही पूर्ण होता है। शिव-भक्तों को यजुर्वेदविहितविधान से रुद्राभिषेक करना चाहिए। किंतु असमर्थ व्यक्ति प्रचलित मंत्र-ॐ नम:शिवायको जपते हुए भी रुद्राभिषेक कर सकते हैं। रुद्राभिषेक से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। अंसभवभी संभव हो जाता है। प्रतिकूल ग्रहस्थितिअथवा अशुभ ग्रहदशा से उत्पन्न होने वाले अरिष्ट का शमन होता है। जन्मकुंडली में मारकेशजैसे दुर्योगके बनने पर महामृत्युंजयमंत्र पढते हुए रुद्राभिषेक करें। वैदिक मृत्युंजय मंत्र-˜यम्बकं यजामहेसुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।इसका अर्थ है- दिव्य सुगंध से युक्त, मृत्युरहित,धन-धान्यवर्धक, त्रिनेत्र रुद्र का हम पूजन करते हैं। वे रुद्र हमें अकालमृत्यु और सांसारिक बंधन से मुक्त करें। जिस प्रकार खरबूजा पक जाने पर डंठल से अपने-आप पृथक हो जाता है, उसी प्रकार हम भी मृत्यु से दूर हो जाएं किंतु अमृत (मोक्ष) से हमारा अलगाव न हो।
ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन प्रमुख ग्रंथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में विभिन्न ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में बनने वाले अनिष्टकारकयोग की निवृत्ति के लिए(शांति हेतु) शिवार्चन और रुद्राभिषेक का परामर्श दिया गया है। भृगुसंहितामें भी जन्मपत्रिकाका फलादेश करते समय महíष भृगुअधिकांश जन्मकुंडलियों में जन्म-जन्मांतरों के पापों और ग्रहों की पीडा के समूल नाश एवं नवीन प्रारब्ध के निर्माण हेतु महादेव शंकर की आराधना तथा रुद्राभिषेक करने का ही निर्देश देते हैं।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया (2)व नवमी (9) के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी (4), एकादशी (11) तथा शुक्लपक्ष की पंचमी (5) व द्वादशी (12) तिथियों में भगवान शंकर कैलास पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है। कृष्णपक्ष की पंचमी (5), द्वादशी (12) तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी (6)व त्रयोदशी (13) तिथियों में भोलेनाथनंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते हैं। अत:इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
कृष्णपक्ष की सप्तमी (7), चतुर्दशी (14) तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा (1), अष्टमी (8), पूíणमा (15) में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूíत के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होगी। इससे यजमान पर महाविपत्तिआ सकती है। कृष्णपक्ष की द्वितीया (2), नवमी (9) तथा शुक्लपक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10) में महादेवजीदेवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप (दुख) मिलेगा। कृष्णपक्ष की तृतीया (3), दशमी (10) तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी (4) व एकादशी (11)में नटराज क्रीडारतरहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चनसंतान को कष्ट दे सकता है। कृष्णपक्ष की षष्ठी (6), त्रयोदशी (13) तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) में रुद्रदेवभोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा दे सकता है।
यह ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है। ज्योतिíलंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
वस्तुत:शिवलिंगका अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और तब उसकी सारी समस्याएं स्वत:समाप्त हो जाती हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से सारे पाप-ताप-शाप धुल जाते हैं।
डा. अतुल टण्डन