Vrishab - Taurus
- 12 December 2013
"बेल-पत्र" देखने में तो एक साधारण सा पत्र है परन्तु भोले नाथ को अत्यंत प्रिय है, जो व्यक्ति एक, तीन या पांच की संख्या में शुद्ध बेलपत्र भगवान् शंकर पर चढ़ाता है वह निःसंदेह ही इस भव-सागर से पार हो जाता है | जो व्यक्ति अखंडित (बिना कटा हुआ ) बेलपत्र भगवान शिव पर चढ़ाता है, वह निर्विवाद रूप से अंत में शिव लोक को प्राप्त होता है| बिल्व वृक्ष के दर्शन, स्पर्श व प्रणाम करने से ही रात- दिन के सम्पूर्ण पाप दूर हो जाया करते हैं | बेल-पत्र को बिल्व पत्र भी कहते हैं यह एक अद्भुत औषधि भी है |
महादेव को बेल-पत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं ---
त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम | त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन ||"
प्रसिद्ध बिल्वाष्टकम् में बेल-पत्र के गुणों और उसके प्रति शिव के प्रेम का वर्णन किया गया है। शिव का पूजन विधान में बेलपत्र चढ़ाये बिना शिव का पूजन अधूरा होता है | बेल-पत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुडी रहती हैं तीन संख्या का महादेव से अत्यंत जुड़ाव है | शिव त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले ), शिव का त्रिशूल है और शिव त्रिपुंड (लेटी हुई तीन रेखाओं का टीका) लगाते हैं इसीलिए बेल-पत्र शिव को अत्यंत प्रिय है | तीन में पूरा संसार समाहित है त्रिदेव = ब्रह्मा, विष्णु , महेश त्रिलोक = स्वर्ग, मृत्यु, पाताल तीन गुण= सत्व, रज, तम तीन नाड़ी = वात, पित्त, कफ तीन काल = भूत, वर्त्तमान, भविष्य तीन ध्वनि = अ, उ, म (प्रणव = ॐ )
शिव की उपासना से मानव अपने तीनो तापों (भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक ) को नष्ट करता हैं | शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
बेल-पत्र के बारे में
बेल-पत्र छह मास तक बासी नहीं होता अर्थात आप दुबारा एक बार जल से धो कर बेलपत्र को दुबारा शिवजी पर चढ़ाया जा सकता है |
बेल-पत्र सदैव उल्टा अर्पित करें, अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहें |
बेलपत्र विषम संख्या (एक, तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह ) में चढ़ाना शुभ फलदायी होता है
बेल-पत्र में चक्र एवम वज्र नहीं होना चाहिये | कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं एवम बेल-पत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं |
बेल-पत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बेल-पत्र चढ़ाया जा सकता है |
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