Navratri 'द्वितीय दिवस'
- 19 September 2014
अर्गला स्तोत्र के उपर्युक्त प्रथम श्लोक में भगवती के ११ स्वरूपों को नमस्कार किया गया है | आइये जानें इन ग्यारह स्वरूपों का संक्षिप्त परिचय
१) जयंती - महेश्वरी का वह रूप जो सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी है, जयंती के रूप में जाना जाता है | २) मंगला - माता का यह रूप मंगलमयी है जो अपने भक्तों को जन्म-मरण आदि बंधनों से मुक्ति करती है एवं मोक्ष्य दायिनी है, मंगला के रूप में प्रसिद्द है | ३) काली - देवी का वह स्वरुप जो प्रलय के समय सम्पूर्ण सृष्टि को अपने में समेत लेता है उसे इस जगत में काली के नाम से जाना जाता है | ४) भद्रकाली - जो अपने भक्तो को देने के लिए भद्र, सुख, मंगल आदि स्वीकार करती है वे भद्रकाली है | ५) कपालिनी - देवी का वह स्वरुप जो हाथ में कपाल और गले में मुण्डमाला धारण किये हुए है और जो शत्रुओं के लिए भयंकर है वह भक्तो के लिए अभयंकर है | ६) दुर्गा - जो अष्टांग योग कर्म व उपासना रूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है भगवती दुर्गा कहलाती है | ७) क्षमा - सम्पूर्ण जगत जननी होने से अत्यंत करुणामय स्वाभाव होने के कारण जो भक्त अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती है उस माँ का नाम क्षमा है | ८) शिवा - शिव कल्याण है तो शिवा कल्याणी है अर्थात माँ के कल्याण करने वाले रूप को bके नाम से जाना जाता है | ९) धात्री - सम्पूर्ण प्रपंच को धारण करने के कारण भगवती का नाम धात्री है | १०) स्वाहा - स्वाहा रूप से यज्ञ भाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करने वाली शक्ति स्वाहा है | ११) स्वधा - श्राद्ध और तर्पण को स्वीकार करके पितरों का पोषण करने वाली शक्ति स्वधा रूप है |