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- 01 December 2013
धर्म का गिरता स्वरुप .........................
आज हमारा धर्म और धार्मिकता का स्वरुप ही बदल गया है, कुछ दशको पहले के धार्मिक स्वरुप और आज के स्वरुप मे जमीन और आसमान का फर्क आ गया है, पहले अखंड रामायण का बोलबाला था आज उसको जागरण के रूप मे बदल दिया गया है! जहाँ मन मे भक्ति थी, वहीँ आज धर्म के नाम पर हंगामा हो रहा है , आज कोई भी वैदिक पूजन से दूर भाग रहा है और हंगामा पूजन उसे पसंद आ रहा है ............. पूजन का अर्थ जहाँ आप शांति से ईश्वर से अपनी बात कर सकें, जहाँ मन एकाग्र हो, जहाँ शांति और एक अद्भुत शीतलता अनुभव हो ! परन्तु आज पूजन के नाम पर जागरण ने ले लिया है, हमारे वेद-शास्त्र मे भी जागरण का उल्लेख आया है - जिसमे स्पस्ट तौर पर जागरण का मतलब आप रात्री जागरण करें और अपने ईश्वर का जाप, स्त्रोत, भजन और कथा का श्रवण करें, ना कि फ़िल्मी गीतों के तर्ज़ पर तैयार भजन पर नाचें, जिसमे भक्ति छोड़ कर सभी भाव आ जाएँ ! आज कल जागरण मे एक और कु प्रथा का समावेश हो गया है, जो कि माता की मूर्तियों के स्थापना और जागरण के बाद उस मूर्ति का विसर्जन जो की नदियों के लिए एक अभिश्राप हो गया है ! किसी को ये चिंता ही नहीं है एक तरफ तो हम एक माता को पूज रहे है और दूसरी तरफ एक माता को दूषित कर रहे है !