Dharmik Number
- 14 January 2014
उत्तर भारत और मध्य भारत में मनाया जाने वाला यह महालक्ष्मी जी का प्रमुख त्योहार है | उत्तर भारत में मुखयत: यह खत्री(क्षत्रिय) समाज द्वारा इसके असली स्वरुप में अर्थात सोलह दिनों तक मनाया जाता है | वहीँ महाराष्ट्र में इसका प्रारूप दुर्गा पूजा के समान तीन दिवसीय पर्व के रूप में हो जाता है और माता लक्ष्मी की विशाल मूर्ति को स्थापित किया जाता है, पूजन उपरांत इसे विसर्जन भी किया जाता है | इस व्रत को सोलह दिन किया जाता है, कुछ लोग इसको तीन दिन का व्रत की हिसाब से प्रथम दिन, आठवें दिन और सोलहवें दिन रह कर भी करते हैं |
इस महालक्ष्मी व्रत का आरम्भ भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी (जिसे राधा अष्टमी भी कहते हैं) से होता है और समापन आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर किया जाता है | इस व्रत को विवाहित जोड़े रखते हैं |
सबसे पहले प्रात:काल स्नान से पहले हरी घास (दुर्बा) को अपने पूरे शरीर पर घिसें ! स्नान आदि कार्यो से निवृ्त होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है. व्रत का संकल्प लेते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।अर्थात हे देवी, मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करूंगा. आपकी कृपा से यह व्रत बिना विध्नों के पर्रिपूर्ण हों, ऎसी कृपा करें. यह कहकर अपने हाथ की कलाई में बना हुआ डोरा बांध लें, जिसमें 16 गांठे लगी हों, उसको हल्दी लगा के बाँध लेना चाहिए |
१ – लकड़ी की चौकी पर श्वेत रेशमी आसन (कपड़ा ) बिछाएं ,
२ – यदि आप मूर्ति का प्रयोग कर रहे हो तो उसे आप लाल वस्त्र से सजाएँ | श्री लक्ष्मी को पंचामृ्त से स्नान कराया जाता है. और फिर उसका सोलह प्रकार से पूजन किया जाता है
३ – संभव हो तो एक कलश पर अखंड ज्योति स्थापित करें |
४ – सुबह तथा संध्या के समय पूजा आरती करें, मेवा,मिठाई, सफेद दूध की बर्फी का नित्य भोग लगायें | ५- पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है. नये सूत 16-16 की संख्या में 16 बार रखा जाता है.
इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक को ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. और दान- दक्षिणा दी जाती है.
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा ।व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा ।।अर्थात क्षीर सागर से प्रकट हुई लक्ष्मी जी, चंद्रमा की सहोदर, श्री विष्णु वल्लभा, महालक्ष्मी इस व्रत से संतुष्ट हो. इसके बाद चार ब्राह्माण और 16 ब्राह्माणियों को भोजन करना चाहिए. इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है. इस प्रकार जो इस व्रत को करता है, उसे अष्टलक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था. उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़. और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है,जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना. वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है.
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा. यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये. अगले दिन वह सुबह चार बजे ही वह मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया. ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा.
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया. उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है
इस व्रत पर सोलह बोल की कहानी सोलह बार कही जाती है और चावल या गेहूँ छोडे जाते है l आश्विन कृष्ण अष्टमी को सोलह पकवान पकाये जाते है l
‘सोलह बोल’ की कथा है —
”अमोती दमो तीरानी ,पोला पर ऊचो सो परपाटन गाँव जहाँ के राजा मगर सेन दमयंती रानी ,कहे कहानी .सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी ,हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी l ‘
1 . व्रत के अंतिम दिन उद्यापन के समय दो सूप लें, किसी कारण से आप को सूप ना मिले तो आप स्टील की नई थाली ले सकते हैं इसमें १६ श्रृंगार के सामान १६ ही की संख्या में और दूसरी थाली अथवा सूप से ढकें , १६ दिए जलाएं , पूजा करें , थाली में रखे सुहाग के सामान को देवी जी को स्पर्श कराएँ एवं उसे दान करने का संकल्प लें |
२ . जब चन्द्रमा निकल आये तो लोटे में जल लेकर तारों को अर्घ दें तथा उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के पति पत्नी एक – दूसरे का हाथ थाम कर के माता महालक्ष्मी को अपने घर आने का (हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ ) इस प्रकार तीन बार आग्रह करें.
३ . इसके पश्चात एक सुन्दर थाली में माता महालक्ष्मी के लिए, बिना लहसुन प्याज का भोजन सजाएँ तथा घर के उन सभी सदस्यों को भी थाली लगायें जो व्रत हैं | यदि संभव हो तो माता को चांदी की थाली में भोजन परोसें , ध्यान रखिये की थाली ऐसे रखी होनी चाहिये की माता की मुख उत्तर दिशा में हो और बाकि व्रती पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर मुह कर के भोजन करें |
४ – भोजन में पूड़ी, सब्जी ,रायता और खीर होने चाहिये | अथार्त वैभवशाली भोजन बनाये
५ – भोजन के पश्चात माता की थाली ढँक दें एवं सूप में रखा सामान भी रात भर ढंका रहने दें | सुबह उठ के इस भोजन को किसी गाय को खिला दें और दान सामग्री को किसी ब्राह्मण को दान करें जो की इस व्रत की अवधी में महालक्ष्मी का जाप करता हो या फिर स्वयं यह व्रत करता हो, यदि ऐसा संभव न हो तो किसी भी ब्राह्मण को ये दान दे सकते हैं | या किसी लक्ष्मी जी के मन्दिर में देना अति उत्तम होगा |
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम: