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- 27 February 2011
महामृत्युंजय मंत्र महा मंत्र है | महामृत्युञ्जय मंत्र ' यजुर्वेद' के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
समस्त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं। महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो (अक्षरों) का अर्थ महामृत्युंघजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग-अलग अभिप्राय हैं।
ओम त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार 33 देवताओं के घोतक हैं।
उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
त्रि – ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है। यम – अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है। ब – सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है। कम – जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है। य – वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है। जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है। म – प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है। हे – प्रयास वसु मणिबन्ध में स्थित है। सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मूल में स्थित है। ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है। न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मूल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है। पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्त के मध्य भाग में स्थित है। ष्टि – अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्ध में स्थित है। व – पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मूल में स्थित है। र्ध – भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है। नम् – कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है। उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है। र्वा – स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है। रु – भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है। क – धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है। मि – अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है। व – मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है। ब – वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है। न्धा – अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है। नात् – भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है। मृ – विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् – दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है। मु – पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है । क्षी – पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है। य – त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है। मां – विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है। मृ – प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है। तात् – अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।
उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्तध देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग – अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है ।
मंत्रगत पदों की शक्तियॉं
जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग – अल पदों की भी शक्तियॉं है। त्र्यम्बकम् – त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है। यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है । महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है। सुगन्धिम् – सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है। पुष्टि – पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है। वर्धनम – वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है । उर्वा – ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है । रुक – रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है। मिव- रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है । बन्धानात् – बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है । मृत्यो: – मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है। मुक्षीय – मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है । मा – माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है । अमृतात – अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।
कलौकलिमल ध्वंयस सर्वपाप हरं शिवम् । येर्चयन्ति नरा नित्यं तेपिवन्द्या यथा शिवम्।। स्वयं यजनित चद्देव मुत्तेमा स्द्गरात्मवजै:। मध्यचमा ये भवेद मृत्यैतरधमा साधन क्रिया।। देव पूजा विहीनो य: स नरा नरकं व्रजेत । यदा कथंचिद् देवार्चा विधेया श्रध्दायान्वित ।। जन्मचतारात्र्यौ रगोन्मृदत्युतच्चैरव विनाशयेत् ।
कलियुग में केवल शिवजी की पूजा फल देने वाली है । समस्त पाप एवम् दु:ख भय शोक आदि का हरण करने के लिए महामृत्युजय की विधि ही श्रेष्ठ है। निम्निलिखित प्रयोजनों में महामृत्युजंय का पाठ करना महान लाभकारी एवम् कल्याणकारी होता है-
⇔ जीवन पर संकट आने पर ⇔ मारकेश होने पर ⇔ किसी भी क्रूर ग्रह की दशा-अन्तर्दशा होने पर ⇔साढ़ेसाती- ढैया होने पर
⇔या किसी भी आपदा की स्थिति में आप महामृत्युंजय मंत्र का जाप करवा सकते हैं |