नवग्रह वैदिक मंत्र
- 21 May 2015
कुष्मांडा -
आयु, यश, बल एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु माता कुष्मांडा की आराधना का विधान है |
नवरात्री के चौथे दिन माँ दुर्गा की उपासना " कुष्मांडा" के स्वरुप में की जाती है | माँ सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति है | इन्ही देवी ने अपने 'ईषत' हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी और इसलिए इन्हे कुष्मांडा की संज्ञा प्राप्त है | इनका निवास सूर्य-मंडल के भीतर के लोक में है | माता के तेज से ही दसों दिशाएं प्रकाशित हैं | जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों और अंधकार था तब देवी ने ब्रह्माण्ड का सृजन किया | माता के शरीर की कांति सूर्य के सामान है, माता की आठ भुजाएं है, इसी कारण आपको अष्टभुजी भी कहा जाता है, आपका वाहन सिंह है | आपके दाहिने हाथों मे कमंडल, धनुष-बाण और कमल सुशोभित है तथा बाएं हाथों में अमृत कलश, जय की माला, गदा और चक्र हैं ! आपके आराधक समस्त रोग-शोक से मुक्त हो जाते हैं तथा दीर्घायु को प्राप्त होते हैं |
हाथों में पुष्प ले कर माता का ध्यान करें
ध्यान मंत्र सुरा संपूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दघानां हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
ध्यान मंत्र के उपरांत पुष्प को माता के चरणों में अर्पित करें, पंचोपचार पूजन और भोग लगाने के बाद नीचे दिए गए मंत्र को कम से कम १०८ बार जपें
" ॐ क्रीं कुष्माण्डायै क्रीं ॐ "
अपने मनोरथ के निमित्त माँ से विनती करें, आरती करें | माता को कुम्हड़े की बलि भी दे सकते हैं |