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Dhanteras (धनतेरस)

धनतेरस

धनतेरस पूजन मुहूर्त17:23 से 20:34
प्रदोषकाल -17:23 से 19:57
वृषभकाल -18:37 से 20:34
 
खरीदारी का शुभ समय
लाभ = 7:34 - 8:58
अमृत=  8:58 - 10:22
शुभ =11:47- 13:11
लाभ =20:35 - 22:11

धन-त्रयोदशी (धनतेरस) को धन्वन्तरी जयंती के रूप में भी जाना जाता है | धनतेरस वाले दिन को यमदीप दान दिवस और गोत्रिरात्र व्रत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है |

घर की साफ़ सफाई कर लक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा करें और दोपहर में बर्तन (चाँदी, सोने, पीतल या किसी अन्य धातु ) खरीद कर घर लायें, इस दिन बर्तन खरीद कर लाने का विधान है | ऐसा माना जाता है कि बर्तन के साथ साथ सुख, समृद्धि और सौभाग्य घर आता है | धनतेरस वाले दिन किसी को उधार देने से बचें, किसी भी प्रकार की संम्पति खरीदने के लिए आज का दिन सबसे उपयुक्त होता है | संध्या के समय घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर मिटटी के दीपकों को तेल से भरकर उनमें साफ़ बत्ती डालकर, उसे जला देना चाहिए दीपक चावल के ढ़ेरी पर रखना चाहिए और दीपक का मुख दक्षिण दिशा कि ओर होना चाहिए | दीपक रखने के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें -

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानत् सूर्यज: प्रीयतां मम।।

इस दीपदान को यम दीपदान कहते हैं यमराज के लिए आज के दिन दीप दान के विधान के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है, एक बार की बात है कि यमराज ने अपने दूतों से कहा कि "तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक में जा कर प्राण हरण करते हो क्या कभी ऐसा हुआ है जब तुम्हे किसी का प्राण हरण करते समय किसी प्रकार का दुःख हुआ हो या दया आई हो अथवा पश्चाताप हुआ हो !" यमदूतों ने कहा "महराज ! आपकी आज्ञा का पालन करने में हम तत्परता दिखाते हैं और इस सम्बन्ध में सामान्यतः हमें किसी प्रकट का दुःख, पश्चाताप और दया नहीं आती, परन्तु एक बार हमें एक राजकुमार के प्राण हरण के समय उसकी पत्नी के करुण क्रंदन, चीत्कार और हाहाकार को देख-सुनकर हमें अपने कृत्य से घृणा हो गयी थी | उस राजकुमार का प्राण उसेक विवाह के चौथे दिन ही हरण करना  पड़ा था | ऐसे ही करुण क्रंदन, विलाप और हाहाकार युवाओं के प्राण हारते समय हमे देखने और सुन ने को मिलते हैं , अतः हे यमराज ! ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे मनुष्य को असमायिक मृत्यु का सामना न करना पड़े और उसे युवावस्था में ही मृत्यु ना प्राप्त हो !" इसके उत्तर में यमराज ने कहा कि, " जो धनतेरस के पर्व पर मेरे उद्देश्य से दीपदान करेगा, उसकी असमायिक मृत्यु नहीं होगी !" इसके कारण धनतेरस के सायंकाल यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है | इस दिन व्रत रहने का विधान भी है | आज के दिन कुबेर जी  की स्थापना और पूजन का भी विधान है |

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