रंगीन दुनिया
- 08 September 2012
ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से किया था अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, हिंदू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है | संवत्सर 60 हैं जब 60 संवत पुरे हो जाते हैं तो फिर पहले नंबर से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है |
इन 60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको
ब्रहाविंशति, विष्णुविंशति और शिवविंशति के नाम से जाना जाता है |
1-20 तक - ब्रहाविंशति
21-40 तक - विष्णुविंशति
41-60 तक - शिवविंशति
नीचे हम आपको संवत्सर, उस संवत का फल और उसके स्वामी के बारे में बता रहे है, समझने में आसानी रहे इस लिए रंगों को बदला गया है | वर्तमान में 41 संवत्सर चल रहा है जोकि "प्लवंग" हैं और 21-मार्च-2015 से 42 सम्वंत "कीलक" प्रारंभ होगा |
संवत्सर का नाम |
वर्ष फल |
स्वामी |
01) प्रभव |
प्रजा में यज्ञादि शुभ कार्यों की भावना हो |
विष्णु |
02) विभव |
प्रजा में सुख समृद्धि हो |
बृहस्पति |
03) शुक्ल |
प्रजा में धान्य प्रचुर मात्रा में हो |
इंद्र |
04) प्रमोद |
प्रजा में आमोद प्रमोद, सुख, वैभव की वृद्धि हो |
लोहित |
05) प्रजापति |
प्रजा में चतुर्विद उन्नति हो |
त्वष्टा |
06) अंगीरा |
भोग-विलास की वृद्धि हो |
अहिर्बुधन्य |
07) श्री मुख |
जनसंख्या में अधिक वृद्धि हो |
पितर |
08) भाव |
प्राणियों में सद्भावना बढे |
विश्वेदेव |
09) युवा |
मेघों द्वारा प्रचुर वृष्टि हो |
चन्द्र |
10) धाता |
औषधियों की वृद्धि हो |
इन्द्राग्नी |
11) ईश्वर |
आरोग्य व क्षेम की प्राप्ति हो |
अश्विनीकुमार |
12) बहुधान्य |
अन्न की प्रचुरता हो |
भग |
13) प्रमाथी |
शुभाशुभ प्रकार का मध्यम वर्ष हो |
विष्णु |
14) विक्रम |
अन्न की अधिकता रहे |
बृहस्पति |
15) वृषभ |
जनों का पोषण हो |
इंद्र |
16) चित्र भानु |
विचित्र घटनाओं की अधिकता | लोहित |
17) सुभानु |
आरोग्यकारक व कल्याणकारी वर्ष |
त्वष्टा |
18) तारण |
मेघों द्वारा शुभकारक वर्षा हो |
अहिर्बुधन्य |
19) पार्थिव |
प्रजा की संपत्ति में वृद्धि हो |
पितर |
20) व्यय |
अतिवृष्टि हो | विश्वेदेव |
21) सर्वजीत |
उत्तम वृष्टि का योग |
चन्द्र |
22) सर्वधारी |
धान्यों की अधिकता |
इन्द्राग्नी |
23) विरोधी |
अनावृष्टि |
अश्विनीकुमार |
24) विकृति |
भयकारक घटनाएं |
भग |
25) खर |
पुरुषों में साहस व वीरता का संचार |
विष्णु |
26) नंदन |
प्रजा में आनंद |
बृहस्पति |
27) विजय |
दुष्टों का नाश |
इंद्र |
28) जय |
रोगों का शमन |
लोहित |
29)मन्मथ |
विश्व में ज्वर का प्रकोप |
त्वष्टा |
30) दुर्मुख |
मनुष्यों की वाणी में कटुता |
अहिर्बुधन्य |
31) हेमलंब |
सम्प्रदा की वृद्धि |
पितर |
32) विलम्ब |
अन्न की प्रचुरता |
विश्वेदेव |
33) विकारी |
दुष्ट व शत्रु कुपित हो |
चन्द्र |
34) शर्वरी |
कृषि में वृद्धि |
इन्द्राग्नी |
35) प्लव |
नदियों में बाढ़ का प्रकोप |
अश्विनीकुमार |
36) शुभकृत |
प्रजा में शुभता |
भग |
37) शोभन |
शुभ फलों की वृद्धि |
विष्णु |
38) क्रोधी |
स्त्री-पुरुषों में बैर, रोग वृद्धि |
बृहस्पति |
39) विश्वावसु |
महंगाई बढ़ना, राजा लोभी, रोग व चोरों की वृद्धि | इंद्र |
40) पराभव |
रोग वृद्धि, प्रचुर वृष्टि, राजा का तिरस्कार |
लोहित |
41) प्लवंग |
कृषि हानि, प्रजा में रोग व चोरी, राजों का युद्ध |
त्वष्टा |
42) कीलक |
पित्त-विकार, मध्यम वर्षा, सर्प भय, प्रजा में कलह |
अहिर्बुधन्य |
43) सौम्य |
राजा प्रसन्न, शीत प्रकृति के रोग, मध्यम वर्षा, सर्प भय | पितर |
44) साधारण |
राजा व प्रजा सुखी, वर्षा उत्तम |
विश्वेदेव |
45) विरोधकृत |
राजाओं में बैर भाव, मध्यम वर्षा, प्रजा प्रसन्न |
चन्द्र |
46) परिधावी |
अन्न महंगा, मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग, उपद्रव |
इन्द्राग्नी |
47) प्रमादी |
जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि |
अश्विनीकुमार |
48) आनंद |
जनता में सुख और आनंद |
भग |
49) राक्षस |
प्रजा में निष्ठुरता की वृद्धि |
विष्णु |
50) नल |
विविध धान्यों की वृद्धि |
बृहस्पति |
51) पिंगल |
कहीं उत्तम और कहीं मध्यम वृष्टि |
इंद्र |
52) काल |
धन-धान्य की हानि |
लोहित |
53) सिद्दार्थ |
सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि | त्वष्टा |
54) रौद्र | विश्व में रौद्र भाव की अधिकता |
अहिर्बुधन्य |
55) दुर्मति |
मध्यम वृष्टि | पितर |
56) दुदुम्भी |
धन-धान्य की वृद्धि |
विश्वेदेव |
57) रुधिरोद्गारी |
हिंसक घटनाओं से रक्तपात |
चन्द्र |
58) रक्त्राक्ष |
रक्तपात से जन हानि |
इन्द्राग्नी |
59) क्रोधन |
शासकों को विजय प्राप्त |
अश्विनीकुमार |
60) क्षय |
प्रजा का धन क्षीण | भग |