स्फटिक की माला के लाभ
- 29 May 2022
शनि का नाम -
संस्कृत- मंद, अर्कपत्र, नील, छायासुत, सूर्यपुत्र, भानुज, सौरि, पंगु, कोण आदि
अंग्रेजी- Saturn (सैटर्न )
उर्दू- जूदुल, केदवान
वर्ण – कृष्ण
अवस्था – वृद्ध
लिंग – नपुंसक
जाति – शुद्र
स्वरुप – आलसी
गुण – तम
तत्त्व- वायु
प्रकृति – वात (मतान्तर से कफ तथा वात )
दिशा- पश्चिम
धातु – लोहा
रत्न – नीलम (Blue - Sapphire )
शनि को काल-पुरुष का ' दुःख ' माना गया है | ग्रह मंडल में इसे सेवक का पद प्राप्त है | कर्मों के अनुसार सुख और दुःख का निर्धारण करने के कारण इनको ' न्यायधीस ' भी कहते हैं |
आधिपत्य- शनि कारागार, पुलिस, यातायात, ठेकेदारी, अचल-संपत्ति, जमीन, मजदूर, कल-कारखाने, मशीनरी, छोटे दुकानदार, छोटे संस्थान, लोहे सम्बन्धी कार्य, सीमेंट, लोकप्रियता, सार्वजनिक प्रसिद्धि का अधिपति होता है |
शनि से प्रभवित अंग
शनि का हड्डी, पसली, मांस-पेशी, पिंडली, घुटने, स्नायु, नख, केश तथा जोड़ों पर प्र्रभाव होता है |
शनि के रोग
चिंता, तनाव, हड्डी सम्बन्धी रोज, जोड़ों का दर्द, केशों का झड़ना और दीर्घकालीन रोग
शनि भी सदैव ‘ मार्गी ‘ नहीं रहता, अपितु समय समय पर मार्गी, वक्री तथा अस्त होता रहता है | इसकी स्व-राशियाँ मकर और कुम्भ हैं | यह तुला राशि में उच्च का, मेष राशि में नीच का तथा कुम्भ राशि में 20 अंश तक मूलत्रिकोणस्थ होता है | (तुला राशि में 20 अंश तक परमोच्च और मेष में 20 अंश तक परम नीच का होता है )
मित्र और शत्रु
बुध, शुक्र, राहु और केतु शनि के नैसर्गिक मित्र हैं |
बृहस्पति के साथ शनि समभाव रखता है |
सूर्य, चन्द्र और मंगल से शनि की नैसर्गिक शत्रुता है |
जब शनि ख़राब फल देता है तो ये होता है जातक पर असर देखें विडियो
यदि शनि आप से कुपित हैं तो देखें शनि के उपाय