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त्रिपुंड (Tripund)

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॥त्रिपुंड धारण विधान ॥

किसी समय एक बार सनत्कुमारजी ने भगवान् कालाग्रिरुद्रदेव से प्रश्न किया- हे भगवान् ! त्रिपुंड कि विधि तत्वसहित मुझे समझाने कि कृपा करें. वह क्या है ? उसका स्थान कौन सा है , उसका प्रमाण (अर्थात-आकार ) कितना है,उसकी रेखाएँ कितनी हैं ,उसका कौन सा मंत्र है , उसकी शक्ति क्या है,उसका कौन सा देवता है, कौन उसका कर्ता है तथा उसका फल क्या होता है ?!

यह सुनकर उन भगवान् कालाग्रिरुद्र ने सनत्कुमार जी को समझाते हुए कहा कि त्रिपुंड का द्रव्य अग्रिहोत्र की भस्म ही है .इस भस्म को 'सघोजातादि' पंचब्रह्म मन्त्रों को पढ़कर धारण करना चाहिए। अग्रिरिति भस्म ,वायुरिति भस्म ,खमिति भस्म, जलमिति भस्म, स्थलमिति भस्म ,(पंचभूतादि ) मन्त्रों से अभिमंत्रित करें।

'मानस्तोक' मंत्र से अँगुली पर ले तथा 'मा नो महान' मन्त्र से जल से गीला करके 'त्रियायुंष' .इस मंत्र से सिर ,ललाट,वक्ष एवं कंधे पर तथा 'त्रियायुंष' एवं 'त्र्यम्बक' मंत्र के द्वारा तीन रेखाएँ बनाए। इसी का नाम शाम्भव व्रत कहा गया है,इस व्रत का वर्णन वेदज्ञों ने समस्त वेदों में किया है। जो मुमुक्ष जन यह आकांशा रखते हैं कि उन्हें पुनर्जन्म न लेना पड़े, तो उन्हें इसे धारण करना चाहिए ! यह सुनने के पश्चात् सनत्कुमार जी ने पूछा कि त्रिपुंड कि तीन रेखाओं को धारण करने का प्रमाण (लम्बाई आदि ) क्या है ? भगवान् श्री कालाग्रिरुद्रा ने उत्तर दिया कि तीन रेखाओं दोनों नेत्रों के भ्रूमध्य से आरम्भ कर स्पर्श करते हुए ललाट-मस्तक पर्यन्त धारण करें !

नेत्र युग्म प्रमाणेन भाले दीप्तं त्रिपुड्रकम्। प्रातः ससलिलं भस्म मध्यान्हे गन्ध मिश्रितम्। सायान्हे निर्जलं भस्म एवं भस्म विलेपयेत्॥  प्रातः जल के सांथ,मध्यान्ह चन्दनादि के सांथ तथा सायं सिर्फ भस्म का लेपन करना चाहिए। प्रथम रेखा गार्हपत्य अग्रिरूप ,'अ' कार रूप ,रजोगुणरूप , भूलोकरूप,स्वात्मकरूप, क्रियाशक्तिरूप ,ऋग्वेदस्वरुप ,प्रातः सवनरूप तथा महेश्वरदेव के रूप की है। द्वितीय रेखा दक्षिणाग्रिरूप, 'उ' कार रूप ,सत्त्वरूप,अन्तरिक्ष रूप , अंतरात्मारूप, यजुर्वेद रूप एवं सदाशिव के रूप की हैं ! तीसरी रेखा आहवानियाग्रि रूप ,'म ' कार रूप ,तम रूप ,परमात्मा रूप ,ज्ञानशक्ति रूप ,सामवेद रूप ,तृतीय सवन रूप तथा महादेव रूप की है !

इस तरह त्रिपुंड कि विधि से जो भी कोई ब्रह्मचारी ,गृहस्थ ,वानप्रस्थी अथवा सन्यासी भस्म को धारण करता है.वह महापातकों एवं उपपातकों से मुक्त हो जाता है वह समस्त तीर्थों में स्नान करने के समान पवित्र हो जाता है,उसे समस्त वेदों के पारायण का फल प्राप्त हो जाता है। वह सम्पूर्ण देवों को जानने में समर्थ हो जाता है,वह समस्त प्रकार के भोगों को भोगकर भगवान् शिव के लोक को प्राप्त करता है। वह पुनः जन्म नहीं लेता,इस प्रकार से भगवान् कालाग्रिरुद्र देव ने सनत्कुमार जी से त्रिपुंड के धारण करने की विधि का वर्णन किया है ! जो मनुष्य इसका पाठ करता है ,वह भी उसी रूप में (शिव रूप) हो जाता है।

Note: यदि मंत्रो के उच्चारण में कठिनाई हो रही हो तो " नमः शिवाय " बोल कर अंगों में त्रिपुंड लगायें |

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