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- 15 June 2014
भगवान शिव के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। वे अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं। दुर्वासा सतयुग, त्रैता एवं द्वापर तीनों युगों के एक प्रसिद्ध सिद्ध योगी महर्षि हैं। वे सब प्रकार के लौकिक वरदान देने में समर्थ हैं।
धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोक में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा हुए, जो देवताओं द्वारा समुद्र में फेंके जाने पर उससे प्रकट हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया। शास्त्रों में इसका उल्लेख है- अत्रे: पत्न्यनसूया त्रीञ्जज्ञे सुयशस: सुतान्। दत्तं दुर्वाससं सोममात्मेशब्रह्मïसम्भवान्॥
- भागवत 4/1/15
अर्थ- अत्रि की पत्नी अनुसूइया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चंद्रमा नाम के तीन परम यशस्वी पुत्र हुए। ये क्रमश: भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।